प्रिय बहनों
स्मरण के आकाश में
भटकते हुए खरोचों के निशान
आज मुझे दिखाई दे रहे हैं |
मैंने इन्हें कभी नहीं देखा था |
शब्द टूट गए थे ,
मन कहीं डोल गया था |
अतीत के गर्त में समाया हुआ काल
क्या फिर से प्रत्यावर्तन कर रहा है
इतिहास के खाली पृष्ठों पर |
चलने की आहट आज मुझे सुनाई दे रही है |
इस सुनसान बिस्तर पर
कौन हूँ मैं ? एक अतीत ?
अथवा
एक वर्तमान
जो एक सेतु बन कर खड़ा है ,
इस छूटे विगत के बीच
चलते रहो
मुक्त होकर
चलते रहो ,
यह सेतु मुझे जोड़ देगा
ओह ! मेरी गति
आज मुझे अपनी परछाई भी स्वीकार नहीं है
प्रिय परिजन
अब मुझे सोने दो,
चलो, देर रात हो गई है
पक्षी सब घोंसलों में घुस चुके है |
पथचारी भी अपने अपने
गृहों में लौट चुके हैं |
लेकिन कुछ निशाचर अभी डोल रहे हैं
सड़कों पर
कुछ उद्याम सपने संजोये |
कुछ ने फुटपाथ पर
अपना आस्थाना बना लिया है
धरती के आँगन में
और मै
इस आलीशान बिस्तर
पर
कुछ अपरिचित कवच
में बद्ध
ओ! मेरे मन
वहन करो पीड़ा
सहन करो अपरिसीम वेदना |
वरण करो चुभन |
आग्रह मत करो चलने का
अभी कुछ बाकी है कर्ज
|
बर्दास्त मुझे करना है
क्योंकि घर मुझे लौटना है
तुम्हारे लिए सिर्फ़ तुम्हारे लिए |
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