05.25 16:12
बड़ी बहन
मैंने लिहाफ के अंदर से झांक कर देखा, पूरी आंख भी खोलने की जरूरत नहीं महसूस हुई, कंजी आंख से देखा मेरा छुट्टी का काम (स्कूल का होम बर्क) ठीक हो रहा है की नहीं । मैंने बस निश्चिंत होकर करवट बदली और सो गई । सुबह चार बजे तक कभी सुलेख, कभी लंगड़ी भिन्न के सवाल सब कुछ पूरा करके मेरी बड़ी बहन सोने गई । कितनी देर सो पाई होगी ? सिर्फ डेढ घंटा । फिर उठ कर यूं घर गृहस्थी के काम में लग गई , जैसे यह कोई खास बात न हो ।
सिर्फ मेरा ही नहीं, मेरी बाकी बहनों का काम वह इसी तरह रात भर निपटाती रहती थी, मानो हमने उन्हें ठेका दिया हो काम करने का । हम सुबह उठ कर रोबदार आवाज़ में पूछते , "काम हो गया, बहनजी  ?"
वह हंस कर जवाब देती , " देखो, कुछ बाकी है, पंद्रह सुलेखे हुई है, आज रात भर में हो जाएगा " उन्होंने ऐसे जवाव दिया अलबत्ता उन्होंने कोई बड़ा अपराध किया हो |
हम भी धौंस दिखाते , "आज हो जाना चाहिए , अभी तो गणित का काम भी बाकी है, कब होगा? "
वह उसी तरह इत्मीनान से उत्तर देती ,"डरो मत, स्कूल खुलने के पहले सब हो जाएगा"
हम उसी तरह आपसी खेल कूद में लग जाते ।
इसका मतलब यह हरगिज नहीं था कि वो स्कूल ना जाती हो ।हमारी ये सबसे बड़ी बहन  तीक्ष्ण बुद्धिमान और होशियार थीइतनी की  घर की फर्श पर गणित के लंबे लंबे सवाल हल करती थी और हमसे कहती  , 'ठीक से देख कर चलो, कहीं मिट ना जाए !' वह और हमारे ताऊजी दोनों ही गणित के  रंग में रंगे उस्ताद और दोनों ही कमरे की लाल फर्श पर  सवालों की पटिया बिछा देते थे और हम छोटी बहने घूम घूम कर आश्चर्य के साथ तमाशा  देखा करते थे |
हम दूसरी छोटी बहनें सवाल के चारो तरफ चक्कर लगाते , गाना गाते हुए झूमते रहते , जैसे हम उस सवाल के रक्षक हो !! पर वो मगन रहती सवाल हल करने में । जब हल हो जाता तो कहती , कितना कठिन था, लेकिन सही हो गया । देखो, उत्तर मिल गया ।
हम तो उनकी इस प्रज्ञा के इतने दीवाने थे कि उनको चाक पकड़ा कर दूसरे कमरे में ले जाकर कहते ' अब , यहां करो !!' उस कमरे की जमीन पर आंके हुए सवालों को अभी तो मिटाया नहीं जा सकता है, क्योकि अभी वह ताजे है और नहीं उस पर पैर रख कर चल सकते है क्योकि सरस्वती है पैर कैसे रखे ? वह उसी धुन में फिर लग जाती और दूसरा कमरा भी अंक –गणित के चित्रों से भर जाता
प्रज्ञा शब्द उनके लिए व्यवहार करना कुछ बेतुका है क्योंकि तब हमें इस शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था। लेकिन हम उनकी इस अद्भुत प्रतिभा के कायल हो चुके थे । अब जब पीछे मुड़ कर (सिंहावलोकन) सोचती हूँ तो लगता है वो तो आज की भाषा में ‘गिफ्टेड चाइल्ड’ थी |
वह जितनी गणित में चुस्त थीजो उनका प्रिय विषय था, हम, दूसरी बहनें , उतनी ही भोंगा  वसन्त !!! अब हंसी आती है की हम सवाल रट कर पास करने की कोशिश करते थे और अक्सर गणित में ही फेल हो जाते ? ज्यामिति के कुछ प्रतिपाद्य रट कर जस्ट पास मार्क मिल गए तो पास, अन्यथा वही रोना धोना । गणित हमे कभी समझ नहीं आई । हम विस्मय भरी दृष्टि से देखा करते थे कि, यह कौन खेत की मूली है !!! चुटकियों में सवाल हल कर लेती है ।
जब स्कूल खुलने का समय नजदीक आता तो हम घबराहट में आ जाते और उनको कापियां  दिखा कर कहते ' मेरा अभी इतना होम वर्क बाकी है, एक दिन स्कूल खुलने में शेष रह गया  है, मेरा यह काम कब करियेगा ?'
हम उनके सामने रो धो कर, मुसीबतों का पहाड़ खड़ा करके , बिंदास होकर, घोड़ा तबेला बेंच कर बेखबर सो जाते । अब वह जाने और उनका काम ! !
जब काफी बड़े हो जाने पर  उनसे पूछते की , " आप ऐसा क्यों करती थी, तो उनका जवाब होता, " मुझे डर लगता था , तुमलोग स्कूल में मार खाओगी "! आज शायद यह बात लोगो को असंभव लग सकती है पर हमारे लिए यह उतनी ही सहज और सरल की हमने इसे अपना अधिकार ही समझ  लिया था |               (क्रमशः)


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