बड़ी बहन और कहानी का पिटारा
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कहाँ
तुम्हारा घर है बेटी, किस कुल की तुम रानी
किस माँ के नयनो की
पुतली, पिता कौन है सानी ...
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पाला पोसा
मुझे चील ने मेरी है वह माता
मुझे पिता का नाम जानने
दिया न कोई दाता
पेड़ों पर मै पली सदा ही
रही नगर से दूर
सौदागर है मेरे स्वामी जो
है भारी सूद |
एक
सुरीली और धीमी आवाज हमें सुनाई देती और हम दौड़ते हुए आते और चिल्लाना शुरू कर देते, ‘चील मैया, चील
मैया और....चील मैया ही सुनेगे, बस
...बस... और कुछ नहीं बस... चील मैया ही
सुनेगे |’
“दिन
नहीं रात नहीं –-जब देखो चील मैया, आज दूसरी कहानी सुनो, ‘दुखिया-सुखिया की’, या ‘सात बहुओं
वाली’-- जिसमे एक बंदरिया बहू भी थी’,
या ‘कहतें ऊपर दाल गई तो मै चभ्भू क्या’
“----जैसी कहानियों से हमें भरपूर आकर्षित कराती रहती थी | पर चील मैया की बात ही
कुछ और थी |इसलिए हम समवेत स्वर में चिल्लाते , ‘पहले चील मैया ही सुनेगे और बाद में कुछ और !!’ और
सुनते भी थे, पर अंत में वही करुण और आतुर आवाज , “ चील मैया...’ वह तो हमारे राग
राग में बस गई थी |
हार
मान कर उन्हें हमारी बात रखनी पड़ती और वो शुरू हो जाती | इस कहानी में एक बच्ची
जिसकी सौतेली माँ उसे दिन भर तरह तरह के काम के बोझ से लाद देती थी | बच्ची बेचारी
क्या करे ? रो धो कर पुकार लगाती पर कोई
नहीं सुनने वाला | एक दिन किसी ने उससे
कहा कि --“तुम अपनी असली माँ को बुलाओ वह
तुम्हारी मदद कर सकती है , साथ ही साथ
तुम्हारे काम का बोझ भी हल्का कर सकती है, देखो न एकबार कोशिश करके | तुम
ऐसा करो कि बरांडे में एक सुतली बांध दो
और जब भी जरूरत पड़े तो उसे हिला कर कहो ,
‘पतला सूत हिले डुले मेरी मैया आ मिले ‘ |” और उसने वैसा ही किया | और सचमुच चील
मैया जो उसकी माँ थी, आती और उसका सारा काम करके चली जाती | एकदिन उसकी सौतेली माँ
उसे ढेर सारा काम देकर चली गई यह देखने के लिए की वह इतना काम कैसे करती है , फिर शीघ्र ही लौट आयी और उसने
सारा रहस्य मालूम पड़ गया | अब उसकी सौतेली
माँ ने एक दिन उसके सूत को हिला कर चील मैया को वैसे ही बुलाया जैसे उसकी सौतेली
बेटी बुलाती थी और चील मैया के आने पर उसे काटकूट कर उसकी तरकारी बना कर रख दी
| इस तरह अब जब भी बच्ची चील मैया को बुलाती तो वह नहीं आती | हार कर उसे
वही पहली तकलीफ से गुजरना पड़ता |इस तरह
कहानी आगे बढती है | लड़की की शादी हो जाती है उसके पति एक सौदागर है जो अक्सर काम
के सिलसिले में महीनो बाहर चले जाते है | उस समय उसकी सास भी बहु को
यातनाये देने से बाज नहीं आती थी, लेकिन अब चील मैया नहीं है जो उसकी सहायता करती
| एक दिन वह नदी किनारे बैठी रो रही थी तभी किसी पीर ने उसके रोने का कारण जानना
चाहा | उसने ऊपर वाले गाने के माध्यम से अपना परिचय पीर को दिया| पीर ने उसे सलाह
दी कि ‘बेटी, तुम एक सोने का पिंजरा बनवा
कर उसमे चील मैया का आह्वान करो वह जरूर आयेगी और तब तुम उसे हमेशा हमेशा के लिए अपने पास रख लेना |’
अबकी
बार जब उसके सौदागर पति वापस आये तो उसने
पति से कह कर एक सोने का पिंजरा बनवाया और चील मैया का आह्वान वैसे ही किया
जैसे पीर ने बताया था | इस तरह कहानी का
अंत तो सुखद हो गया पर हमारी प्यास हर रोज उसी कहानी पर टिकी रहती | और हमारी
बहनजी भी उसी जोशो-खरोश से गा गा कर कहानी सुनाने में मस्त हो जाती | माँ कहती
–‘यह क्या रामायण पाठ होता है रोज ?’
वह इतनी मस्ती से वह गीत गाते-गाते कहानी सुनाती थी
कि हम वही कहानी उन्हें
बारबार सुनाने के लिए आग्रह करते| वह भी किस अनजान रहस्य से घिरी
वही कहानी बार बार सुनाने भी लगती | रहस्य
यही कि हमारे बाल मन में सास और सौतेली
माँ के सम्बन्ध में कुछ ऐसी धारणायें बो
दी गई थी की सौतेली माएं और सासे ऐसी ही
तकलीफ बेटियों और बहुओं को देती है |सास के किस्से और बहुओं को तकलीफ देने के सारे
पेंच अक्सर माँ से सुना करते थे | सास
नामके प्राणी की अत्यंत भयंकर और क्रूर
तस्वीर हमारे मन में बस गई थी |हमारे ताऊ जी यह नसीहते भी हंस हंस कर दिया करते थे
कि यदि तुम लड़कियों की सासों ने तकलीफ
तुम्हे दी तो तुम लोग उनके कान में चिमटा या कलछी घुसेड देना |कभी कभी चिढाने के
ख्याल से राह चलती किसी मोटी और बेढब औरत को दिखा कर कहते. ‘देखो अन्नी, तुम्हारी सास आ रही है, तुम्हें
लेने , छिप जाओ ....’ शायद बहन और हमारे
बाल मन के दिमाग में सास की इसी कल्पना के
कारण उन्हें उस दुष्ट सास की कहानी सुनाने में बेटी और बहू का वह दर्द, जो स्वयं
उनका और हमारा भी हो सकता था, सोच कर पुनः पुनः वही कहानी सुनाने का आग्रह करने पर
अपनी उसी सुरीली आवाज में सुनाने लगती
|गाने का शौक तो उनका जन्मजात था | वह अगली बार |
(क्रमशः)
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