Posts

Showing posts from July, 2020
बड़ी बहन और कहानी का पिटारा ·          कहाँ तुम्हारा घर है बेटी, किस कुल की तुम रानी            किस माँ के नयनो की पुतली, पिता कौन है सानी ... ·          पाला पोसा मुझे चील ने मेरी है वह माता           मुझे पिता का नाम जानने दिया न कोई दाता          पेड़ों पर मै पली सदा ही रही नगर से दूर         सौदागर है मेरे स्वामी जो है भारी सूद | एक सुरीली और धीमी आवाज हमें सुनाई देती और हम दौड़ते हुए आते   और चिल्लाना शुरू कर देते, ‘चील मैया, चील मैया   और....चील मैया ही सुनेगे, बस ...बस... और कुछ नहीं बस... चील मैया   ही सुनेगे |’   “दिन नहीं रात नहीं –-जब देखो चील मैया, आज दूसरी कहानी सुनो,   ‘दुखिया-सुखिया की’, या ‘सात बहुओं वाली’--   जिसमे एक बंदरिया बहू भी थी’, या   ‘कहतें ऊपर दाल गई तो मै चभ्भू क्...
बड़ी बहन और बंदरुआ १४ अप्रैल को पहला बैशाख का दिन हमारे लिए बहुत इंतजार का दिन होता था क्योकि उस दिन बहुत बड़ा चडक मेला छातूबाबू बाज़ार के पास लगता था   और हम सभी बहने मेला देखने जाते थे और तरह तरह के मिटटी के खिलोने अपनी अपनी पसंद के खरीद के लाते थे – तोता –मैना की जोडी, कबूतरो के जोडे, मिटटी के फल वगैरह वगैरह |वहां से खरीदी हुई एक नटराज की मूर्ति आज   भी हमारे घर में शोभायमान है | लेकिन इस बार हम लोग लाये मिटटी के चूल्हा-चक्की, बर्तन ,कढाई, कलछी, चिमटा और भगोने, इसके साथ ही छोटा अलुमुनियम का स्टोव | अब हमने नये वर्तनो के साथ पिकनिक मनाने की सोची | हमारे यहाँ एक बड़ी अंडाकार गोल टेबल थी, जिसके नीचे बैठने की जगह थी और हममें से कोई भी उसके अन्दर घुस कर बैठ सकता था | अक्सर हम उसे छुपने के लिए व्यवहार करते थे | तो उस दिन हमने ठीक किया अज पिकनिक इसी के सामने मनायेगे | सब मिल कर जुट गए | जोर शोर से काम शुरू हो गया | थोडा मिटटी का तेल लेकर चूल्हा भी जलाया | फिर सबजी काटने का काम , आटा मला गया | सब कुछ नार्मल की तरह   चल रहा था | व्यस्तता इतनी की बात करने की   भी फुरसत नही...
बड़ी बहन और बकसिया जैसे ही बहनजी स्कूल जाने की तैयारी करती, हमारी फारमाँईशो का पुलिंदा उनके सामने खुल जाता | “बहनजी – जानवर वाला, बिस्कुट, टाफी, कम्पट” —जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर अपनी फरमाईशे   पेश करते थे | हालाँकि हम छोटी   बहने   जानते थे कि बड़ी बहन को उस समय सिर्फ़ दो आना हाथ-खर्च मिलता था| इतने से पैसे में वो हमारी इतनी डिमांड कैसे पूरी   करेगी ? छोटे होने के कारण हमें मिलता था एक आना, जो हम खा-पीकर कब का ख़त्म कर देते थे और नज़र रहती थी   उनके दो आने पर | हम तो चाहते थे वे अपने दो आने में हमारे लिए सारी दुनिया बटोर कर ले आये !!! चार छोटी बहनों की मांग पूरी करना वे शायद अपना फर्ज समझती थी |   इसलिए वे अपने दो आने का अच्छा सदुपयोग करती थी |जब वह साढ़े चार बजे के करीब स्कूल से लौटती तो हम बरांडे में खड़े होकर उनका इंतजार करते रहते थे | हमारा फ्लैट उस समय तीन   तल्ले पर था , आज की तरह नीचे तल्ले   नहीं बल्कि काफी ऊँचा था और हम तालियाँ बजा बजा कर उनके आगमन की सूचना घर भर को दे दिया करते थे | ये छुटंकी बहन किसी कारणवश यदि   वहां नहीं होती तो...
05.25 16:12 बड़ी बहन मैंने लिहाफ के अंदर से झांक कर देखा , पूरी आंख भी खोलने की जरूरत नहीं महसूस हुई , कंजी आंख से देखा मेरा छुट्टी का काम (स्कूल का होम बर्क) ठीक हो रहा है की नहीं । मैंने बस निश्चिंत होकर करवट बदली और सो गई । सुबह चार बजे तक कभी सुलेख , कभी लंगड़ी भिन्न के सवाल सब कुछ पूरा करके मेरी बड़ी बहन सोने गई । कितनी देर सो पाई होगी ? सिर्फ डेढ घंटा । फिर उठ कर यूं घर गृहस्थी के काम में लग गई , जैसे यह कोई खास बात न हो । सिर्फ मेरा ही नहीं , मेरी बाकी बहनों का काम वह इसी तरह रात भर निपटाती रहती थी , मानो हमने उन्हें ठेका दिया हो काम करने का । हम सुबह उठ कर रोबदार आवाज़ में पूछते , " काम हो गया, बहनजी   ?" वह हंस कर जवाब देती , " देखो , कुछ बाकी है , पंद्रह सुलेखे हुई है , आज रात भर में हो जाएगा " उन्होंने ऐसे जवाव दिया अलबत्ता उन्होंने कोई बड़ा अपराध किया हो | हम भी धौंस दिखाते , " आज हो जाना चाहिए , अभी तो गणित का काम भी बाकी है , कब होगा ? " वह उसी तरह इत्मीनान से उत्तर देती ," डरो मत , स्कूल खुलने के पहले सब हो जाएगा" हम...