...मैं कहता आंखिन की देखी कबीर का एक प्रसिद्ध वाक्यांश इस बात की पुष्टि करता हैं कि ‘ प्रत्यक्षमेव प्रमाणं’ | उधार के ज्ञान पर निर्भर रहने के बजाय जीवन की प्रत्यक्ष , अनुभवात्मक समझ ही वैधता का तमगा पाता हैं । न्यायालय में तो साक्षी यानि प्रत्यक्षदर्शी ही अंतिमेत्थम माना जाता है | प्रत्यक्ष अर्थात इन्द्रियों के द्बारा प्राप्त ज्ञान | पर इन्द्रियां यदि धोखा दें, तो आँखों पर विश्वास कैसे किया जाय | प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्त कहते हैं जो एक बार धोखा दे उसका विश्वास नहीं करना चाहिए | तो फिर इन्द्रियों का विश्वास कैसे किया जाय ? इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध न्यायाधीश Leibowitz कहते हैं कि साक्षी यानि प्रत्यक्षदर्शी विश्वसनीय नहीं होते हैं | वे उदाहरण देते हैं कि किसी एक क्लब डिनर में उन्होंने लोगों से पूछा ‘कितने लोग camel सिगरेट पीते हैं, जो उस समय की विख्यात ब्रांड थी | उन्होंने पांच लोगो को उनमे से चुना और एक टोस्ट मास्टर से पूछा – दिन में वह कितनी सिगरेट पीता है, और कितने साल से पी रहा है ? टोस्ट मास्टर ने जवाब दिया ― दो पैकेट दिन में, बीस साल से | उन्होंने ...
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…. कालः पचतीति इति वार्ता ... कालः पचतीति इति वार्ता ― महाभारत के वनपर्व से उद्धृत यह पंक्तियाँ कहती है कि प्राणीजगत काल के हाथ में पकाए गए भोजन की तरह है , जिन्हें एक न एक दिन काल के गाल में समा जाना ही है . काल सूर्यरूपी अग्नि, दिन - रात्रिरूपी इन्धन , भवसागर रूपी महामोहमय युक्त क ढा ई में म ही ने और ऋतु ओं की कलछी से उलटते पुलटते हुए जीवधारिओं को पका कर खा रहा है. यद्यपि पकाने की क्रिया में इन सभी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है―यथा क ढा ई , अग्नि, कलछी , सब्जी इत्यादि. लोकव्यवहार में भी हम देखते हैं कि ‘पचति’ क्रिया के अंतर्गत कई छोटी छोटी क्रियाएं शामिल रहती है, जैसे गैस जलाना, बर्तन उठाना, चावल को पानी से धोना चूल्हे के पास खड़े रहना, बीच बीच में चावल को चलाना इत्यादि. इन सभी क्रियाओं का फल होता है चावल के कणों का मृदु हो जाना. साधारणतः क्रिया से किसी काम का होना या करना समझा जाता है अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति का बोध होता है . क्रिया के सन्दर्भ में और एक बात ध्यान रखने की है कि हमेशा उद्देश्य प्रणोदित ...