पानी के पालनहारे प्रियंकर पालीवाल पानी पालनहार है वे पानी के पालनहारे थे जल और मनुष्य के पुरातन रिश्ते का महत्व जानते थे वे वे जानते थे सागर से बिछुड़ी बूंद की भटकन नदी से बिछड़े नीर की हौलनाक दास्तान वे ठीक-ठीक समझ पाते थे बादल और बूंद के रिश्ते को पानी और मिट्टी से बिछोह का दर्द उन्हें बेचैन किए रहता था मिट्टी उन्हें पहचानती थी और वे मिट्टी को वे हाड़तोड़ मेहनत करने वाले किसान थे सिल्क रूट पर काफिले लेकर चलते हुए अपने समय के सम्मान्य सार्थपति-सार्थवान थे सैनिकों की भांति वे खेल सकते थे रण-कौशल चमका सकते थे युद्ध में तलवार नियम-निष्ठा में उन्होंने द्विजत्व के मानदण्डों को किया था अंगीकार वे ही थे जिन्होंने जाति-श्रेष्ठता की ऊर्ध्वाधर मान्यताओं को कर दिया था अस्वीकार अनुक्रम में नहीं , उनका भरोसा अनुग्रह और अनुराग में था श्रम-उद्यम नवाचार में था , न्यायपूर्ण वितरण और सतत विकास में था मरुदेस के उर्वर खड़ीनों में बिखरा है उनके श्रम-उद्यम और स्वावलम्बन का उजास जालिम सालिम के सिपहसालार भी दुहराते रहे उनके पानीदार होने की दास्ता...